हमारे सनातन हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता महाराज श्री गणेश जी को सर्व प्रथम पुजनीय देवता माना गया है। महाराज श्री गणेश जी की पुजा आराधना में श्री गणेश चालीसा का भी एक अलग ही विशेष महत्व है। आज हम श्री गणेश चालीसा के पाठ से होने वाले सुखद फायदे व गुणकारी लाभ के बारे में बात करेंगे। आइए नज़र डालते हैं आज के इस लेख श्री गणेश चालीसा के पाठ से होने वाले सुखद फायदे व गुणकारी लाभ पर:-

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1. श्री गणेश चालीसा का महत्व
श्री गजानन महाराज जी को प्रसन्न करने के लिए उनके पसंदीदा भोग-वस्तुओं का प्रयोग पूजा-पाठ में करा जाता हैं। ताकि वह खुश होकर अपने भक्त जानो की मनोकामना पूर्ण करें। ऐसे में भगवान श्री Ganesh जी को फूल, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक, मोतीचूर के लड्डू, खीर, गुड़, नारियल आदि बेहद पसंद है।
इन सबके अलावा एक और भी चीज़ है जिससे आप श्री Ganesh को आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं, और वो है श्री गणेश चालीसा।
गणेश चालीसा का सर्वाधिक महत्व यह है कि गणेश चालीसा में भगवान श्री Ganesh के जन्म, पराक्रम व उनकी महिमा का विस्तार से उल्लेख किया गया है। जिससे हम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। अपने जीवन में उतार सकते हैं।
गणेश चालीसा के नियमित पाठ करने से घर परिवार में सुख-शांति व समृद्धि बनी रहती है। घर के सभी सदस्यों के मन में आत्मविश्वास की जागृति होती है। साथ ही साथ नई उमंग का भी संचार होता है।
श्री गणेश की कृपा से गणेश चालीसा का पाठ करने वाले व्यक्ति को रिद्धि सिद्धि बुद्धि व ज्ञान विवेक की प्राप्ति होती है।
2. श्री गणेश चालीसा पाठ के सुखद फायदे व गुणकारी लाभ
हमारे सनातन हिंदू धर्म में त्रिनेत्रधारी श्री भोलेनाथ शिव शंकर व माता पार्वती जी की दूसरी संतान के तौर पर श्री Ganesh जी को बेहद पूजनीय और श्रद्धेय माना जाता है। साथ ही साथ श्री गणेश जी को “सिद्धिविनायक” की उपाधि भी मिली हुई है। जिसकी वजह से इनका गुणगाण तीनो लोको में अनंत काल से होता आया है।
सच्चे मन से श्री गणेश जी की पूजा आराधना व श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से क्या क्या फायदे होता है, आइए जानते हैं :-
- श्री गणेश चालीसा के नियमित पाठ से श्री Ganesh जी की कृपा प्राप्त होती है।
- श्री गणेश जी की कृपा से धन संपत्ति रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है।
- गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियां आती है। श्री Ganesh जी हमारे जीवन के सारे दुख तकलीफ दूर करते हैं। दुखों से लड़ने की ताकत हौसला मिलती हैं।
- श्री Ganesh जी को विघ्नहर्ता कहते हैं। श्री गणेश चालीसा के नियमित पाठ से हमारे जीवन की सारी विघ्न, बाधायें, विपत्तियां दूर होती है।
- श्री गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से घर परिवार में सुख शांति व समृद्धि बनी रहती है।
- सच्चे मन से श्री Ganesh जी की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
- विद्यार्थी वर्ग के लिए भी Ganesh जी की वंदना काफी लाभदायक होता है। विद्या अध्ययन में बहुत मदद मिलती है। ध्यानपूर्वक गणेश चालीसा का पाठ करने से एकाग्रता बढ़ती है और इस तरह पढ़ाई में अच्छा मन लगता है।
- श्री Ganesh जी शत्रुओं का विनाष करते हैं। अगर आप शत्रुओं से परेशान हैं। शत्रु लोग कोई भी काम बनने नहीं देता है, तो ऐसे में आपको श्री गणेश जी की आराधना श्री गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- श्री Ganesh जी की पूजा श्री गणेश चालीसा के पाठ से शादी विवाह में आ रही देरी, परेशानियां दूर होती है। श्री गणेश जी की कृपा से शीघ्र शादी के योग बनते हैं।
- श्री गणेश चालीसा के नियमित पाठ से बुध दोष की ग्रह दशा समाप्त होती है।
- श्री गणेश चालीसा के नियमित पाठ से स्वास्थ्य समस्याएं दूर होती हैं। व्यक्ति के जीवन से तनाव अवसाद दूर होती है। सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है। जिससे व्यक्ति के जीवन में जोश, उत्साह, उमंग बना रहता है।
3. श्री गणेश चालीसा पाठ विधि
प्रतिदिन नियम से श्री Ganesh जी की पूजा करने वाले भक्तों के जीवन से दुख की काली छाया दूर हो जाती है। श्री गणेश जी की पूजा के साथ श्री गणेश चालीसा का पाठ सही विधि के साथ करने से श्री गणेश जी की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है। जिससे व्यक्ति को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं श्री गणेश चालीसा का पाठ करने की सही विधि क्या है :-
श्री Ganesh जी की पूजा व चालीसा पाठ के लिए प्रातः काल व संध्या का समय सर्वोत्तम माना गया है।
श्री गणेश चालीसा पाठ के दौरान ज़रूर बरतें ये सावधानियां
श्री गणेश चालीसा का पाठ हमेशा साफ़ सुथरे और धुले वस्त्र पहन कर ही करें। चालीसा का पाठ करने के दोरान मन में किसी बुरे ख्याल ना आने पाए
- प्रकार की चालीसा जाप के समय प्रसाद के रूप में बूंदी के लड्डू और मोदक ही चढ़ाएं।
- चालीसा पाठ के समय श्री Ganesh जी की मूर्ति पर दुर्वा चढ़ाना ना भूलें।
- श्री गणेश चालीसा का पाठ करते समय हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।
- श्री Ganesh जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान भी अवश्य करें।
4. श्री गणेश जी कौन है?
श्री गणेश जी माता पार्वती व भगवान शंकर जी के पुत्र है। डिंक नामक मुषक इनका वाहन है। ज्योतिष में इनको केतु का
देवता माना जाता है। श्री Ganesh जी गणों के स्वामी है इसलिए इनको गणपति के नाम से भी जाना जाता है। श्री गणेश जी के
सिर हाथी के सिर के समान है इसलिए इनको गजानन भी कहते हैं।
- माता भगवती पार्वती
- पिता – श्री शंकर जी
- भाई- श्री कार्तिकय (बड़े भाई)
- बहन- अशोकसुन्दरी
- पत्नी- दो (1) ऋद्धि (2) सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में श्री Ganesh जी को ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
- पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
- प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
- प्रिय पुष्प- लाल रंग के
- प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
- अधिपति- जल तत्व के
- प्रमुख अस्त्र- पाश, अंकुश
- वाहन – मूषक
5. श्री Ganesh जी की पूजा पहले क्यो होती है ?
शास्त्रों में किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले श्री Ganesh जी की पूजा का विधान है। जैसे शादी विवाह, यज्ञ आदि। अब सवाल ये है कि महादेव, ब्रम्हा विष्णु को हिन्दुओं के सर्वोपरि देवता माना जाता है। फिर पहले पुजा उनका होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता है, क्यों?
शिव पुराण में उल्लेखीत कथा अनुसार एक बार देवताओं में इस बात पर बहस होने लगा कि प्रथम पुज्य देवता कौन है। किस देवता का पहले पुजा होना चाहिए। सभी देवता अपने को श्रेष्ठ बताने लगे। सभी चाहते थे कि पहले पुजा उनका हो। विवाद को बढ़ते देखकर श्री नारद जी सभी को महादेव से निराकरण कराने का आग्रह करते हैं। सभी देवता श्री महादेव जी के पास जाते हैं। उनसे इस विवाद का निराकरण करने की विनती करते हैं।
श्री भोलेनाथ महादेव सभी देवताओं से कहते हैं कि क्या आप सभी हमारे निर्णय को स्वेक्षा से मानने को तैयार हैं? सभी देवता उनके निर्णय को मानने के लिए तैयार हो गए। श्री भोलेनाथ जी कहते हैं कि आप सभी अपने अपने वाहन में बैठकर पुरे धरती का तीन परिक्रमा लगायेंगे। जो सबसे पहले परिक्रमा पुरा करेंगे उन्हें प्रथम पुज्य घोषित किया जाएगा।
सभी देवता श्री महादेव जी को प्रणाम कर अपने अपने वाहन से धरती की तीन परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। विघ्नहर्ता श्री Ganesh जी भी उन देवताओं में शामिल था। सभी देवता अपने वाहन से धरती की तीन परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े किंतु श्री Ganesh जी वहीं रुक गये।
श्री Ganesh जी की वाहन मुषक है। मुषक में बैठकर पुरे धरती का सबसे पहले तीन परिक्रमा लगाना संभव नहीं था। श्री Ganesh जी ने बुद्धि से काम लिया। वे जानते थे कि संसार में माता पिता से बड़ा कोई नहीं है। उन्होंने अपने माता-पिता को प्रणाम किया और उनका तीन बार परिक्रमा करके हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
जब सभी देवता अपनी अपनी परिक्रमा पूरी करके लौट आए। तब भगवान शिव जी ने प्रतियोगिता का विजेता श्री Ganesh जी को घोषित कर दिया। उन्होंने Ganesh जी को प्रथम पुज्य होने का आशीर्वाद दिया।
सभी देवता शिव जी की यह निर्णय सुनकर अचंभित हुए। वे भगवान शिव जी से कारण पुछते हैं।
तब शिवजी ने उन्हें बताया कि माता-पिता को पुरे ब्रह्माण्ड एवं समस्त लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उन्हे देवताओं व समस्त सृष्टि से भी उच्च माने गए हैं।
पुत्र Ganesh ने अपनी बुद्धि और विवेक का परिचय दिया। उन्होंने अपने माता-पिता को सर्वोपरी माना और अपने माता-पिता का तीन बार परिक्रमा किया। इसलिए उन्हें प्रथम पुज्य होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तब सभी देवता, भगवान शिव के इस निर्णय से सहमत हुए। तभी से गणेश जी को सर्वप्रथम पूज्य माना जाने लगा।

श्री गणेश चालीसा
।। दोहा ।।
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।
।। चौपाई ।।
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ।।
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ।।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ।।
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ।।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।
अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ।।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ।।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ।।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।
कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।
चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै
।। दोहा ।।
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ।।
॥ इति श्री गणेश चालीसा ॥
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